लखनऊ  योगी सरकार के तीन मंत्रियों सहित एक दर्जन से अधिक विधायकों की टूट और फिर इनके समाजवादी पार्टी (सपा) में जाने के बाद यह तो तय माना जा रहा था कि भगवा दल भी पलटवार करेगा। लेकिन मुलामय के परिवार में ही बीजेपी सेंध लगा देगी, इसका अंदाजा कम ही लोगों को था। पहले मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव और अब नेताजी के साढ़ू प्रमोद गुप्ता, दो दिन में दो विकेट गिराने के बाद भाजपा ने परिवार में 'टूट-फूट' के मुद्दे पर अखिलेश को घेरना शुरू कर दिया है। बकायादा पार्टी ने इसके लिए नया पोस्टर जारी करके इरादे साफ कर दिए हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा अखिलेश की यह छवि गढ़ने की कोशिश में है कि वह परिवार के सदस्यों और अपने चाचा-पिता का भी सम्मान नहीं करते। पार्टी को उम्मीद है कि इसका चुनावी फायदा हो सकता है।

मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू और प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव ने गुरुवार को नई दिल्ली में बीजेपी की सदस्यता ली तो एक दिन बाद ही अखिलेश के मौसा प्रमोद यादव ने सपा अध्यक्ष पर कई सनसनीखेज आरोप लगाते हुए भाजपा का दामन थाम लिया। उन्होंने यहां तक कहा कि अखिलेश ने पिता मुलायम सिंह यादव को घर में बंधक बना लिया है। शिवपाल यादव को भी प्रताड़ित किया जा रहा है। इसके तुरंत बाद बीजेपी ने नया पोस्टर जारी करते हुए अखिलेश को घेरा। पार्टी ने इस पोस्टर में लिखा, ''जो पिता का नहीं हुआ, जो चाचा का नहीं हुआ, जो घर की बहू का नहीं हुआ,जो अपने रिश्तेदार का नहीं हुआ, वो यूपी का क्या होगा?''

क्या है बीजेपी की रणनीति और कितना होगा फायदा?

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी अखिलेश की एक ऐसी छवि गढ़ने की कोशिश कर रही है, जिसे आमतौर पर भारतीय समाज में स्वीकार नहीं किया जाता। सवाल यह है कि बीजेपी को इसका कितना फायदा मिल सकता है? वरिष्ठ पत्रकार सतीश के सिंह कहते हैं कि मौजूदा परिस्थितियों में बीजेपी को इसका बहुत फायदा होता नहीं दिख रहा है। क्योंकि मुलायम परिवार के जो लोग बीजेपी में शामिल हुए हैं, वे इस परिवार की कोर राजनीतिक सदस्य नहीं हैं। मुलायम सिंह यादव के परिवार की राजनीति अब अखिलेश के अलावा शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव और धर्मेंद्र यादव के ईर्द-गिर्द घूमती है।  

परसेप्शन बदलने की कोशिश?

राजनीति में परसेप्शन का महत्वपूर्ण योगदान होता है। नेता और दल एक दूसरे की खास छवि गढ़कर फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि मुस्लिम-यादव की पार्टी वाली छवि बन जाने की वजह से ही 2017 में सपा महज 50 से भी कम सीटों पर सिमट गई थी। हालांकि, इस बार पार्टी ने इस छवि को बदलने की कोशिश की है। स्वामी प्रसाद मौर्य सहित कई ओबीसी नेताओं को पार्टी में लाकर अखिलेश ने बीजेपी के समीकरण को बदलने की कोशिश की है, जिसके सहारे भारतीय जनता पार्टी ने पिछले चुनाव में 300 से अधिक सीटें हासिल की थीं। वरिष्ठ पत्रकार सतीश के सिंह कहते हैं, ''अखिलेश ने जो पार्टी की छवि को आंशिक रूप से बदला है। जिस सामाजिक समीकरण से बीजेपी ने सपा  को पिछले चुनाव में पटखनी दी थी अखिलेश ने उसे भांपते हुए करेक्शन जरूर किया है। परसेप्शन के मामले में कुछ पिछड़ने के बाद बीजेपी मुद्दा बदलने की कोशिश कर रही है।''