नई दिल्ली । कोरोना महामारी के बाद मंकीपॉक्स अब दुनियाभर के लोगों के लिए नई समस्या बन गया है। इस वायरस से बचाव के लिए टीके की भी मांग तेज हो गई है। एक ओर जहां कंपनियों में इस वायरस के टीके को बनाने की प्रतिस्पर्धा चल रही है, वहीं दूसरी ओर दुनियाभर के देश इसे खरीदने के लिए एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 35 देश 1.64 करोड़ खुराक लेने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, जिससे कम आय वाले देश टीके हासिल करने में पीछे रह सकते हैं। डब्ल्यूएचओ के ग्लोबल एचआईवी, हेपेटाइटिस और यौन संचारित संक्रमण कार्यक्रमों के निदेशक मेग डोहर्टी का कहना है कि मंकीपॉक्स के लगातार बढ़ते मामलों के बीच विकसित देश इसकी वैक्सीन की लाखों खुराक ऑर्डर कर रहे हैं। इसका सीधा असर गरीब देशों पर पड़ेगा। इसलिए इससे बचने के लिए टीकों की आपूर्ति समान रूप से होनी चाहिए। अगर असमानता को दूर नहीं किया गया, तो इस वायरस का पूरी तरह खात्मा होना मुश्किल है। लैंसेट आयोग के सदस्य बेयरर ने कहा कि पांच साल से मंकीपॉक्स को लेकर चेतावनी के संकेत मिल रहे थे, लेकिन इसे किसी भी देश ने गंभीरता से नहीं लिया। अफ्रीकी देशों में सबसे ज्यादा मामले आ रहे हैं, लेकिन न वहां वैक्सीन की सुविधा है और न ही डब्ल्यूएचओ से कोई संबंध। अब यह वायरस छह से 76 देशों तक फैल चुका है। उन्होंने कहा कि जापान के साथ बात कर टीका तैयार किया गया था। चेचक के टीके की 10 करोड़ खुराक भी मौजूद थी, लेकिन बढ़ते मामलों के आगे इन टीकों की संख्या बहुत ही कम है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, मंकीपॉक्स से सबसे अधिक प्रभावित लोगों में 98 फीसदी पुरुष हैं, जो पुरुषों के साथ यौन संबंध रखते हैं। 78 देशों में मंकीपॉक्स के लगभग 20,000 मामले आ चुके हैं। वहीं पांच मौतें भी दर्ज की हैं।