अहमदाबाद । गुजरात में विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ टिकटों के लिए लॉबिंग शुरु हो चुकी है। करीब डेढ़ दशक से राज्य की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में सबसे अधिक दावेदार हैं। इसके बाद नेता अभी से अपनी गोटियां सेट करने में जुटे और गांधीनगर से दिल्ली तक की दौड़ लगा रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस के परिवारवाद पर हमलावर रही पार्टी के लिए अपने नेताओं का 'परिवार प्रेम' चुनौती बन गया है। सारौष्ट्र में भाजपा के कई नेता अपने बेटों के लिए टिकट चाहते हैं। इसके बाद राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पार्टी को 'बाप-बेटा' दबाव से निपटने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
खबर के मुताबिक भाजपा सरकार के पूर्व मंत्री दिलीप संधानी अपने बेटे के लिए टिकट चाहते हैं। वहीं, पोरबंदर के सांसद रमेश धदुक भी अपने बेटे को धोराजी सीट से उतारना चाहते हैं। अटकलें हैं कि बाबू बोखरिया ने अपने बेटे के लिए पोरबंदर सीट से टिकट का दावा पेश किया है। वहीं जयराज सिंह जडेजा के बेटे गोंडल सीट से दावेदार हो सकते हैं। इसके बाद अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी इनमें से कितनों के 'परिवार प्रेम' को स्वीकार करती है या फिर किस तरह उन्हें मनाया जाता है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार भाजपा जिस तरह कांग्रेस के परिवारवाद के खिलाफ हावी रही है, उसके लिए नेताओं के बेटों-बेटी को टिकट देना मुश्किल होगा। ऐसा नहीं है कि पार्टी किसी वरिष्ठ नेता के बच्चे को टिकट नहीं देती, लेकिन जितनी बड़ी संख्या में दावेदारी सामने आ रही है, वह भगवा दल के लिए चिंता बढ़ा सकता है। फिलहाल यह पार्टी के सामने दोहरी चुनौती है। यदि पार्टी सांसदों-विधायकों को टिकट देती है, तब कांग्रेस पर उसका हमला कुंद होगा और यदि उनकी मांगों को दरकिनार किया जाता है  तब कई सीटों पर भितरघात का सामना करना पड़ सकता है।
गुजरात में मुख्य तौर पर पाटीदार, कोली, ठाकोर जैसे समुदाय राजनीतिक रूप से प्रभावी रहे हैं। आबादी के अनुपात में इन्हें टिकट बंटवारे में प्राथमिकता मिलती रही है। अब क्षत्रिय समुदाय ने भी चुनाव में अपनी ताकत के हिसाब से टिकट देने की मांग उठाई है।