देश में इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करना काफी जरूरी है. अगर आपकी भी सैलरी इनकम टैक्स स्लैब में आती है तो आपको भी इनकम टैक्स रिर्टन दाखिल करना काफी जरूरी हो जाता है. वहीं अगर कोई शख्स अपनी इनकम टैक्सेबल होने के बावजूद आईटीआर नहीं दाखिल करता है तो उन्हें काफी तरह की दिक्कतों का सामना भी करना पड़ सकता है. आइए जानते हैं इनके बारे में...

लेट फाइलिंग के लिए लेट फीस

आईटीआर समय पर नहीं दाखिल करने पर धारा 234F के तहत 5000 रुपये की लेट फाइलिंग फीस हो सकती है. हालांकि, अगर आपकी कुल आय 5 लाख रुपये से कम है तो विलंब शुल्क 1,000 रुपये तक सीमित है. वहीं अगर आपकनी इनकम टैक्सेबल नहीं है तो देर से आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए आप पर कोई जुर्माना नहीं लगेगा.

टैक्स राशि पर ब्याज

जुर्माने के अलावा आपसे बकाया कर राशि पर प्रति माह 1% ब्याज या एक महीने का हिस्सा (धारा 234A के अनुसार) लिया जाएगा. इस ब्याज की गणना प्रासंगिक वित्तीय वर्ष के लिए आपके रिटर्न को दाखिल करने की नियत तारीख से आपके जरिए अपना रिटर्न दाखिल करने की तारीख तक की जाएगी.

लॉस ऑन बेनेफिट्स

अगर आपको शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड, रियल एस्टेट या अपने किसी कारोबार में नुकसान हुआ है तो आप उन्हें आगे बढ़ा सकते हैं और अगले वर्ष के रेवेन्यू में अंतर ला सकते हैं. इससे आपकी टैक्स देनदारी बहुत कम हो जाती है. हालांकि, अगर देय तिथि तक रिटर्न दाखिल नहीं किया गया है और आपके आईटीआर में नुकसान घोषित नहीं किया गया है, तो आप भविष्य के लाभ के खिलाफ ऑफसेट के रूप में इन नुकसानों का उपयोग नहीं कर सकते हैं. हालांकि नुकसान को आगे बढ़ाया जा सकता है अगर वे एक गृह संपत्ति से संबंधित हों.

आईटीआर संशोधित करने में असमर्थ

यदि मूल रिटर्न देय तिथि के भीतर दाखिल किया जाता है तो करदाता कितनी भी बार संशोधित आईटीआर दाखिल कर सकता है. हालांकि अगर शुरुआती आईटीआर देर से दाखिल किया जाता है, तो आईटीआर को संशोधित करने का लाभ नहीं मिलता. नतीजतन, विलंबित आईटीआर जमा करते समय, करदाता को अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आईटीआर हर तरह से सटीक है क्योंकि विलंबित आईटीआर में त्रुटियों को बदला नहीं जा सकता है.

सजा

समय पर आईटीआर फाइल न करने का एक बड़ा परिणाम यह होता है कि आयकर अधिकारी शायद यह मानेंगे कि किसी व्यक्ति की प्रेरणा टैक्स चोरी थी. नतीजतन, उनके पास अंडर-रिपोर्टिंग आय के लिए 270A के तहत जुर्माना लगाने का अधिकार है, जो रिटर्न दाखिल न करने के कारण करदाता के जरिए चोरी किए गए कर के 50% के बराबर है. उन्हें तीन महीने से लेकर दो साल तक के सश्रम कारावास और कर चोरी की राशि के आधार पर जुर्माना भी हो सकता है.