उज्जैन ।  विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में 11वीं शताब्दी का नागबंध अभिलेख आज भी मौजूद है। पुरातत्व व इतिहास के जानकारों के अनुसार परमार शासक उदियादित्य ने यह अभिलेख यहां लगवाया था। नाग आकृति में निर्मित इस अभिलेख का सृजन कवि मणिश्रेणी ने किया था। 28 लाइन के इस अभिलेख में शिव स्तुति का वर्णन मिलता है। इसमें राजा उदियादित्य को महारथी, पराक्रमी, शूरवीर राजा के साथ महान शिव भक्त बताया गया है।

देवनागरी लिपि में लिखा है नागबंध

पुरातत्व वेत्ता व शोध अधिकारी डा. ध्रुवेंद्र जोधा ने बताया महाकालेश्वर मंदिर में लगा नागबंध अभिलेख देवनागरी लिपि में लिखा है। सर्प के समान आकृति में कुंडली के मध्य वर्णमाला व व्याकरण के अक्षर को अंकित किया गया है, जो पातंजलि सूत्र व महेश्वर सूत्र से सबंधित है। अभिलेख शिव के ज्योर्तिमय लिंग स्वरूप की स्तुति से प्रारंभ हुआ है। शिव को पुष्प अर्पित कर नमस्कार किया गया है।

अनादि काल से महाकाल मंदिर में हो रही पूजा

अभिलेख में आगे उदियादित्य के गुणों का वर्णन है, जिसमें राजा को विषयों पर विजय पाने वाला, शिव का ध्यान करने वाला तथा विद्युत व वायु को अपने अधीन कर शिव का चिंतन करने वाला बताया गया है। इस अभिलेख से प्रतीत होता है कि महाकाल मंदिर में शिव पूजा आदि अनादि काल से चली आ रही है। राजा महाराजा भी यहां भगवान महाकाल की पूजा अर्चना किया करते थे।

उज्जैन व धार में मिलते हैं नागबंध अभिलेख

शोध अध्येता अभिषेक नागर ने बताया उपेंद्र, सियक, सिंधुराज, राजाभोज परमार शासक हुए हैं। उदियादित्य भोज राजवंश के राजा है। पहले परमार राजाओं ने उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया था। बाद में धार को राजधानी बनाया गया। नागबंध अभिलेख परमार शासकों द्वारा बनवाए जाते थे, इसलिए उज्जैन व धार दोनों ही स्थानों पर यह अभिलेख पाए जाते हैं।