भोपाल । इस बार भाजपा की अयोध्या कहे जाने वाले किले में सेंधमारी की तैयारी है और ये कोई दूसरा नहीं, बल्कि अपने ही कर रहे हैं। सबका एक ही लक्ष्य है, कैसे भी हो ‘युवराज’ को अयोध्या की बागडोर देने से रोकना है। शांत रहने वाली अयोध्या में चल रहा अंदरूनी घमासान कभी भी बाहर आ सकता है, जैसा पांच नंबर विधानसभा में हो रहा है। यहां इस बार भाजपा से चार दावेदार मैदान में हैं। यहां से सांसद और महापौर भी विधायक का टिकट चाह रहे हैं। टिकट किसको मिलेगा, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, वहीं कांग्रेस में दो दावेदारों के बीच ही मुकाबला बचा है और दोनों को उनके राजनीतिक आकाओं ने हरी झंडी दे रखी है।
शहर के विधानसभा क्षेत्रों में 4 नंबर का अपना एक अलग ही महत्व है। हिंदूवादी तेवरों और भाजपा की अयोध्या के रूप में जानी जाने वाली इस विधानसभा की बागडोर इस समय मालिनी गौड़ के हाथों में है और इसके पहले वे विधायक के साथ-साथ महापौर भी रह चुकी हैं। यह भाजपा की परंपरागत सीट रही है और 1985 के बाद इस पर कभी भी कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं जीता। 1990 में कैलाश विजयवर्गीय द्वारा इस सीट को भाजपा की झोली में डालने के बाद लगातार यह सीट गौड़ परिवार के पास ही रही। इस बार गौड़ चाह रही हैं कि वे अपने पुत्र, यानी अयोध्या के युवराज एकलव्यसिंह गौड़ के हाथों में इसकी कमान दे दें, यानी उनके लिए टिकट ले आएं, लेकिन ये आसान नजर नहीं आ रहा है। कट्टर हिंदूवादी छवि होने के बावजूद एकलव्य के लिए चार नंबर की राह आसान नजर नहीं आ रही है। पहले ही गौड़ परिवार में मतभेद हैं और स्व. लक्ष्मणसिंह गौड़ के बाद कई लोगों ने इस सीट पर कब्जा जमाया था। वहीं गौड़ के करीबी रहे कई नेता भी अभी गौड़ परिवार से दूर हैं। वहीं भाजपा के ही दावेदारों ने भी इस बार गौड़ परिवार के सामने खम ठोंक रखा है। इनमें कोई हलके-पतले नहीं, बल्कि सांसद और महापौर भी शामिल हैं। दूसरी ओर कांग्रेस में मात्र दो उम्मीदवार हैं, जो किला लड़ा रहे हैं। उनके लिए सेंधमारी मुश्किल है। वहीं इस सीट से सुरजीतसिंह चड्ढा की दावेदारी भी थी, लेकिन उन्हें कांग्रेस का शहर अध्यक्ष बना दिया गया। इसके साथ ही गोलू अग्निहोत्री भी इस विधानसभा में सक्रिय हुए थे, लेकिन वे भी कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।
शंकर लालवानी भले ही सांसद हैं, लेकिन उनकी निगाह इस सीट पर हमेशा से रही है। लक्ष्मणसिंह गौड़ के निधन के बाद उनका दावा और मजबूत हो गया था, लेकिन मुख्यमंत्री की विशेष रुचि के चलते मालिनी गौड़ को टिकट मिला और वे एक उपचुनाव के साथ-साथ लगातार तीन बार विधायक बन गईं। लालवानी सिंधी वोट के बल पर इस विधानसभा से टिकट का दावा करते आए हैं। इस बार फिर वे चार नंबर में सक्रिय हैं, लेकिन खुलकर बोल नहीं रहे हैं। लालवानी की भी मुख्यमंत्री से नजदीकी है और वे इसी का फायदा उठाना चाहते हैं, क्योंकि उनकी सांसदी भी करीब 9 महीने बाद समाप्त हो जाएगी। पुष्यमित्र भार्गव महापौर बनने के बाद भी भार्गव की निगाह इस सीट पर है और वे पिछले एक साल में इसी विधानसभा में कई आयोजन करवा चुके हैं। चूंकि इस विधानसभा में इनका गृहक्षेत्र है, इसलिए भी वे दावा कर रहे हैं। राजनीतिक हलकों में तो कहा जा रहा है कि वे मालिनी गौड़ की तरह ही महापौर रहते विधायक बनना चाह रहे हैं। हालांकि उन्होंने इस क्षेत्र में अपने प्रतिनिधि के रूप में पूर्व पार्षद भरत पारख को भी आगे कर रखा है। जवाहर मंगवानी परिवार को दो बार पार्षद का टिकट मिला। मंगवानी कई बार कार्यालय मंत्री रहे और भाजपा संगठन में कम्प्यूटरीकरण का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है। हर बार बड़े नेताओं के आगमन पर मंगवानी को कार्यक्रम की जवाबदारी दी जाती है। चूंकि इस बार उनका टिकट चार नंबर की खींचतान में ही काट दिया गया था, इसलिए वे अब विधानसभा के दावेदार हो गए हैं। वे बड़े नेताओं को अपनी मंशा बता चुके हैं और अब टिकट के लिए खुलकर सामने आ रहे हैं। विधायक रमेश मेंदोला के नजदीकी युवा मोर्चा के प्रदेश पदाधिकारी गंगा पांडे भी टिकट के दावेदारों की कतार में हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र में धार्मिक आयोजन करवाकर बता दिया कि उनके पास भी क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में हैं। हालांकि इसके पहले उन्होंने पार्षद की भी दावेदारी की थी, लेकिन गौड़ परिवार से मतभेद के चलते उन्हें टिकट नहीं दिया गया। वे खुलकर विधानसभा में मेल-जोल बढ़ा रहे हैं और गौड़ परिवार के लिए मुसीबत पैदा कर सकते हैं।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े कांग्रेस के अक्षय बम पिछली बार भी यहां से दावेदार थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। इस बार वे फिर कई महीनों से विधानसभा में सक्रिय हो गए हैं। कहा जा रहा है कि दिग्विजयसिंह ने उन्हें तैयारियों का इशारा कर दिया है, इसलिए वे इसी विधानसभा में अपना समय दे रहे हैं। उनके पास युवाओं की एक बड़ी टीम भी है। यही नहीं, उन्होंने मतदाता सूची और संगठन के हिसाब से अपनी व्यूहरचना भी कर ली है, ताकि टिकट मिलने के बाद संगठन की ए बी सी डी न करना पड़े। पहली बार कांगे्रस की ओर से सामने आए राजा मंधवानी पेशे से बिल्डर हैं और पूर्व मंत्री सज्जनसिंह वर्मा के करीबी हैं। सिंधी वोटों के बल पर वे अपनी दावेदारी कांग्रेस के सामने कर रहे हैं। वर्मा ने उनकी सीधे कमलनाथ से मुलाकात भी करवा दी है और कमलनाथ ने उन्हें इशारा भी कर दिया है, लेकिन इस सीट पर कमलनाथ की चलेगी या दिग्विजयसिंह की, इसको लेकर कांग्रेसियों में संशय है। मंधवानी अपनी निजी टीम के माध्यम से क्षेत्र में आयोजन करवा रहे हैं।