इंदौर ।   दस वर्षों में दूध के दाम दोगुने हो गए हैं। दूध 60 रुपये लीटर बिक सकता है तो खाद्य तेल 120 रुपये लीटर बिकना ही चाहिए। खाद्य तेलों के घटे दाम से सोयाबीन उद्योग बेहाल है। किसानों की स्थिति भी खराब हो रही है। दि सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन (सोपा) ने चेताया कि यदि यही हाल रहा तो देश में कई किसान अगले वर्ष तिलहन फसल की बुवाई से हाथ खींच सकते हैं। देशभर के उद्योगपतियों की मौजूदगी में सोपा ने सोयाबीन तेल पर आयात ड्यूटी बढ़ाने की मांग की है।

सोपा की मेजबानी में इंदौर में शनिवार से दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सोया कान्क्लेव शुरू हुआ। इस छठे कान्क्लेव के मौके पर सोपा के चेयरमैन डेविश जैन ने कहा कि सोयाबीन को देश में आए हुए 50 वर्ष हो गए हैं। किसानों का जीवन बदलने वाले सोयाबीन में देश को खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की भी क्षमता है। अभी हम जरूरत का 60 प्रतिशत से ज्यादा खाद्य तेल आयात करते हैं। बीते कुछ महीनों में सरकार ने खाद्य तेल के आयात पर ड्यूटी शून्य कर दी थी। नतीजा यह हुआ कि इस साल देश में 42 लाख टन तेल आयात हो चुका है, जो बीते वर्ष से करीब 10 लाख टन ज्यादा है। जरूरत से ज्यादा आयात का नतीजा यह रहा कि अब देश में उत्पादित सोयाबीन और सोया प्रोसेसर्स पर दबाव है। सोयाबीन के दाम मंडियों में 4400-4500 रुपये क्विंटल रह गए हैं, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य 4600 से भी कम है।

खाद्य तेल पर सरकार 30 प्रतिशत ड्यूटी लगाए

इस साल देश में सवा करोड़ हेक्टेयर में सोयाबीन की बुवाई हुई है। ऐसे में देश का उत्पादन भी बेहतर रहेगा। सरसों का भी 113 लाख टन उत्पादन हुआ है। यदि दाम नीचे बने रहे तो अगले साल किसान सोयाबीन बोने से कदम पीछे खींच लेंगे। नतीजा होगा कि देश खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य से पिछड़ जाएगा। सरकार को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य तक पहुंचना है तो तुरंत खाद्य तेलों के आयात पर कम से कम 30 प्रतिशत ड्यूटी लगाना चाहिए जो फिलहाल पांच प्रतिशत ही है। सरकार चुनाव की चिंता में उद्योग और किसानों की चिंता नहीं कर रही है। उल्लेखनीय है कि चुनावी साल होने से सरकार महंगाई पर नियंत्रण में जुटी है। ऐसे में ड्यूटी फ्री आयात की भी अनुमति दे दी गई थी।

मध्य प्रदेश के उद्योग बेहाल

सोपा ने कहा कि देश में सोया उद्योग मुख्य रूप से मप्र और फिर महाराष्ट्र में हैं। अभी सोयाबीन उद्योगों की प्रोसेसिंग क्षमता ढाई करोड़ टन की है, जबकि सवा करोड़ तक ही उत्पादन है। दूसरी ओर विदेशी तेल के ज्यादा आने से भी हाल खराब है, नतीजा है कि आधी क्षमता से भी प्लांट नहीं चल रहे हैं। सरकार यदि उद्योगों और किसानों को बचाना चाहती है तो खाद्य तेलों के दामों की रेंज भी तय करना चाहिए। आज से पांच साल पहले भी सोयाबीन तेल 90 रुपये था और अब 85 रुपये बिक रहा है। साथ ही तेलों के आयात पर ड्यूटी का ढांचा विदेशी तेल बाजार के दामों के आधार पर तय करना चाहिए।