नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट ने शादी की आड़ में रेप से जुड़े मामले की सुनवाई के बाद बड़ा फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने कहा, जब कोई महिला शारीरिक संबंध बनाने का सोच-विचारकर निर्णय लेती है, तो वो जब तक कि शादी के झूठे वादे का स्पष्ट सबूत नहीं कर देती, तब तक सहमति को धोखे से हासिल किया गया नहीं माना जा सकता। जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने शनिवार को एक व्यक्ति के खिलाफ रेप के मामले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि अब यह मामला दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया था। दोनों ने अब शादी कर ली है। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, जब एक महिला परिणामों को पूरी तरह से समझते हुए जानबूझकर शारीरिक संबंध बनाने का विकल्प चुनती है, तो उसकी सहमति को तब तक धोखे से हासिल किया गया नहीं माना जा सकता, जब तक कि उसे पूरा करने की मंशा के बिना शादी के झूठे वादे का सबूत न हो। यह वादा सीधे तौर पर महिला के यौन गतिविधियों में शामिल होने के निर्णय से संबंधित होना चाहिए। 
एक महिला ने एक व्यक्ति के खिलाफ रेप की शिकायत दर्ज कराई। उसने आरोप लगाया कि उसने शादी के बहाने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन बाद में पारिवारिक दबाव का हवाला देते हुए शादी के अपने वादे से मुकर गया। इस मामले में मोड़ उस समय आया जब दोनों पक्षों ने अदालत को सूचित किया कि जोड़े ने अपने मतभेद सुलझा लिए हैं और कानूनी रूप से शादी कर ली है। महिला ने अपने मौजूदा वैवाहिक रिश्ते पर खुशी व्यक्त की और अपनी एफआईआर वापस ले ली। उसने स्वीकार किया कि आरोपी की शादी के प्रति अनिच्छा पारिवारिक दबाव के कारण थी, न कि अविश्वास या धोखे के कारण।

- नीयत गलत नहीं
इस मामले में अदालत ने जांच के दौरान आरोपी द्वारा स्वैच्छिक विवाह पर गौर किया, जिससे संकेत मिलता है कि प्रारंभिक वादा दुर्भावनापूर्ण इरादे से नहीं किया था। पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध और दोषसिद्धि की दूरगामी संभावना को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने आईपीसी की धारा 376 के तहत कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द किया है कि मामले को जारी रखना अदालती प्रक्रियाओं का दुरुपयोग होगा और वैवाहिक सद्भाव को बाधित करेगा।