नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी से अलग होने के बाद लंबे समय तक किसी अन्य महिला के साथ रहने वाले पति को क्रूर नहीं कहा जा सकता है। जब दोबारा मिलने की कोई संभावना न हो। ऐसे ही एक मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वे 2005 से अलग-अलग रह रहे थे और दोबारा मिलने की कोई संभावना नहीं थी। लंबे समय से मतभेद और पत्नी द्वारा की गई आपराधिक शिकायतों ने पति को परेशान कर दिया।
अदालत ने कहा कि विवाद पति और उसके परिवार के सदस्यों के अनादर से उत्पन्न होते हैं। बार-बार होने वाले झगड़ों के परिणामस्वरूप मानसिक पीड़ा होती है, जिसका कोई समाधान नहीं है और पत्नी का आचरण निर्विवाद रूप से क्रूरता के बराबर है। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने 13 सितंबर के एक आदेश में कहा कि इस तरह के लंबे समय तक मतभेदों और आपराधिक शिकायतों ने प्रतिवादी-पति के जीवन को शांति और वैवाहिक रिश्ते से वंचित कर दिया, जो किसी भी वैवाहिक रिश्ते का आधार हैं।
अलगाव के इतने लंबे समय के बाद दोबारा मिलने की कोई संभावना नहीं होने पर प्रतिवादी पति को किसी अन्य महिला के साथ रहकर शांति और आराम मिल सकता है। लेकिन तलाक की याचिका के लंबित रहने के दौरान यह एक बाद की घटना है और इससे पति को अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। मामले में अदालत ने पाया कि पत्नी पति द्वारा तलाक प्राप्त करने से वंचित करने के लिए क्रूरता के किसी अन्य कृत्य को साबित करने में सक्षम नहीं थी। इसमें कहा गया कि पारिवारिक अदालत ने सही निष्कर्ष निकाला कि पत्नी ने पति के साथ क्रूरता की और उसकी अपील खारिज कर दी। मौजूदा मामले में पत्नी ने पति को तलाक देने के पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए दावा किया कि उसके खिलाफ क्रूरता के आरोप गलत थे। उसने कहा कि उसके पति ने दूसरी महिला से शादी कर ली है। हालांकि अदालत ने कहा कि पति की कथित दूसरी शादी का कोई विवरण या सबूत नहीं है।