गुरू के पास तीन शिष्य आए, बोले, गुरूदेव! हम साधना करना चाहते हैं। कोई साधना का सूत्र बताएं। गुरू ने सोचा, साधना का सूत्र बताने से पहले परीक्षा कर ली जाए। गुरू ने तीनों से एक प्रश्न पूछा, आंख और कान में कितना अंतर है। पहला व्यक्ति बोला, चार अंगुल का। दूसरे ने कहा, कान से आंख ज्यादा काम आती है। आंखों देखी बात बहुत स्पष्ट होती है। आंखों देखी और कानों सुनी बात में बहुत अंतर होता है। तीसरे का जवाब था, आंख से हम देख सकते हैं, किन्तु परमार्थ की बात कान से ही सुन सकते हैं।   
गुरू ने पहले व्यक्ति से कहा, तुम अभी व्यापार करो। तुम्हारा नाप-जोख में रस है। तुम साधना के अधिकारी नहीं हो। दूसरे व्यक्ति से कहा, तुम अभी न्याय का काम करो। लोगों के झगड़े सुलझाओ। आंख द्वारा देखे गए प्रमाण ज्यादा सच होते हैं। तीसरे व्यक्ति से कहा, तुम साधना के योग्य हो। मैं तुम्हें आत्मिक ज्ञान दूंगा, क्योंकि तुम परमार्थ की बात में रस लेते हो।  
यही कान, यही आंख सबके पास है। यदि आंख सच्चाई को देखने लग जाए, कान परमार्थ की बात को सुनने लग जाए तो नई बातें हमें प्राप्त हो सकती हैं। इसके लिए हमें गहराई में जाना होगा। सतह पर रहने से काम नहीं चलेगा। यदि हम अध्यात्म चिकित्सा या भाव चिकित्सा के क्षेत्र में प्रयोग प्रस्तुत करें तो अध्यात्म की उपयोगिता बढ़ेगी, यह विश्वास प्रबल होता है। यह भौतिकता का नहीं, अध्यात्म का भी एक साम्राज्य है और उसके बिना मनुष्य सुख और शांति का जीवन जी नहीं सकता।