भोपाल ।  मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य, गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि संभावना का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 26 नवंबर, 2023 को सुश्री संदीपा पारे एवं साथी, भोपाल द्वारा निमाड़ी गायन और लामूलाल धुर्वे एवं साथी, अनूपपुर द्वारा गोंड जनजातीय नृत्य गुदुमबाजा की प्रस्तुति दी गई। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय़ में प्रति रविवार आयोजित होने वाली इस गतिविधि में मध्यप्रदेश के पांच लोकांचलों एवं सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परंपराओं की प्रस्तुति के साथ ही देश के अन्य राज्यों के कलारूपों को देखने समझने का अवसर भी जनसामान्य को प्राप्त होगा। गतिविधि की शुरूआत सर्वप्रथम निमाड़ी गायन से हुई, जिसमें सुश्री संदीपा पारे एवं साथी, भोपाल द्वारा  गणेश वंदना पयल मनाऊँ म्हारा गणपति देवा..., सुप्रभात कुकड़ा सार बोल मोर बरज नगर म..., ह ऊँ तो अगवाड लगाऊं अम्बा अमली..., नागरवन्ति झोपड़ी माया को अंत न पर..., खोलो किवाड़ी माता देखां थारी वाड़ी..., हजार पान सुपारी डेढ़ सौ धोन्ध धोन्धाल्यो रे गणपति..., जैसे कई लोकगीतों की प्रस्तुति दी। मंच पर गायन में संदीपा पारे,  सह-गायन में तृप्ति बिल्लोरे, रश्मि उपरीत, हारमोनियम पर पं.जितेंद्र शर्मा, ढोलक पर रघुवीर सिंह,बांसुरी  पर नितेश मांगरोले ने संगत की।
प्रस्तुति के अगले क्रम में लामूलाल धुर्वे एवं साथी, अनूपपुर द्वारा गोंड जनजातीय नृत्य गुदुमबाजा की प्रस्तुति हुई। गुदुमबाजा नृत्य गोण्ड जनजाति की उपजाति ढुलिया का पारम्परिक नृत्य है। समुदाय में गुदुम वाद्य वादन की सुदीर्घ परम्परा है। विशेषकर विवाह एवं अन्य अनुष्ठानिक अवसरों पर इस समुदाय के कलाकारों को मांगलिक वादन के लिए अनिवार्य रूप से आमंत्रित किया जाता है। इस नृत्य में गुदुम, डफ, मंजीरा, टिमकी आदि वाद्यों के साथ शहनाई के माध्यम से गोण्ड कर्मा और सैला गीतों की धुनों पर वादन एवं रंगीन वेश-भूषा और कमर में गुदुम बांधकर लय और ताल के साथ, विभिन्न मुद्राओं में नृत्य किया जाता है।